Friday, April 19, 2019

देवगुरु बृहस्पती अष्टोत्तर नामावली -डॉ.सुहास रोकडे

बृहस्पती अष्टोत्तर शतनामावली


जिन जातकों की जन्म कुंडली में राहु/गुरु का चांडाल योग बन रहा हो या गुरु किसी भी प्रकार से पीड़ित हो रहा हो तब उन्हें नित्य प्रति बृहस्पति जी के 108 नाम का जाप करना चाहिए. इससे गुरु चांडाल योग के अशुभ प्रभावों में कमी आती है.

विशेष (Important) – जिन लड़कों का यज्ञोपवीत अर्थात जनेऊ नहीं हुआ है उन्हें और महिलाओं को इस पाठ के आरंभ में “ऊँ” के स्थान पर “श्री” का प्रयोग करना चाहिए.   

ऊँ वृं गुरवे नम:
ऊँ वृं गुणवराय नम:
ऊँ वृं गोप्त्रे नम:
ऊँ वृं गोचराय नम:
ऊँ वृं गो-पतिप्रियाय नम:
ऊँ वृं गुणिने नम:
ऊँ वृं गुणवतां श्रेष्ठाय नम:
ऊँ वृं गुरुणां गुरवे नम:
ऊँ वृं अव्ययाय नम:
ऊँ वृं जेत्रे नम:
ऊँ वृं जयन्ताय नम:
ऊँ वृं जयदाय नम:
ऊँ वृं जीवाय नम:
ऊँ वृं अनन्ताय नम:
ऊँ वृं जयावहाय नम:
ऊँ वृं आंगीरसाय नम:
ऊँ वृं अध्वरासक्ताय नम:
ऊँ वृं विविक्ताय नम:
ऊँ वृं अध्वरकृत्पराय नम:
ऊँ वृं वाचस्पतये नम:
ऊँ वृं वशिने नम:
ऊँ वृं वश्याय नम:
ऊँ वृं वरिष्ठाय नम:
ऊँ वृं वाग् विचक्षणाय नम:
ऊँ वृं चित्तशुद्धिकराय नम:
ऊँ वृं श्रीमते नम:
ऊँ वृं चैत्राय नम:
ऊँ वृं चित्रशिखण्डिजाय नम:
ऊँ वृं बृहद्रथाय नम:
ऊँ वृं बृहद्भानवे नम:
ऊँ वृं वृहस्पतये नम:
ऊँ वृं अभीष्टदाय नम:
ऊँ वृं सुराचार्याय नम:
ऊँ वृं सुराध्यक्षाय नम:
ऊँ वृं सुरकार्यहितकराय नम:
ऊँ वृं गीर्वाणपोषकाय नम:
ऊँ वृं धन्याय नम:
ऊँ वृं गीष्पतये नम:
ऊँ वृं गिरीशाय नम:
ऊँ वृं अनघाय नम:
ऊँ वृं धीवराय नम:
ऊँ वृं दिव्यभूषणाय नम:
ऊँ वृं देवपूजिताय नम:
ऊँ वृं धनुर्धराय नम:
ऊँ वृं दैत्यहन्त्रे नम:
ऊँ वृं दयासाराय नम:
ऊँ वृं दयाकराय नम:
ऊँ वृं दारिद्र्यविनाशनाय नम:
ऊँ वृं धन्याय नम:
ऊँ वृं धिषणाय नम:
ऊँ वृं दक्षिणायनसम्भवाय नम:
ऊँ वृं धनुर्वीराधिपाय नम:
ऊँ वृं देवाय नम:
ऊँ वृं धनुर्बाणधराय नम:
ऊँ वृं हरये नम:
ऊँ वृं अंगीरसाब्दसंजाताय नम:
ऊँ वृं अंगिरसकुलोद्भवाय नम:
ऊँ वृं सिन्धुदेशाधिपाय नम:
ऊँ वृं धीमते नम:
ऊँ वृं स्वर्णकायाय नम:
ऊँ वृं चतुर्भुजाय नम:
ऊँ वृं हेमांगदाय नम:
ऊँ वृं हेमवपुषे नम:
ऊँ वृं हेमभूषणभूषिताय नम:
ऊँ वृं पुष्यनाथाय नम:
ऊँ वृं पुष्यरागमणि मण्डनमण्डिताय नम:
ऊँ वृं काशपुष्पसमानाभाय नम:
ऊँ वृं कलिदोषनिवारकाय नम:
ऊँ वृं इन्द्रादिदेवदेवेशाय नम:
ऊँ वृं देवताsभीष्टदायकाय नम:
ऊँ वृं असमानबलाय नम:
ऊँ वृं सत्त्वगुणसम्पद्विभावसवे नम:
ऊँ वृं भूसुराभीष्टफलदाय नम:
ऊँ वृं भूरियशसे नम:
ऊँ वृं पुण्यविवर्धनाय नम:
ऊँ वृं धर्मरूपाय नम:
ऊँ वृं धनाध्यक्षाय नम:
ऊँ वृं धनदाय नम:
ऊँ वृं धर्मपालनाय नम:
ऊँ वृं सर्वदेवतार्थतत्त्वज्ञाय नम:
ऊँ वृं सर्वापद्विनिवारकाय नम:
ऊँ वृं सर्वपापप्रशमनाय नम:
ऊँ वृं स्वमतानुगतामराय नम:
ऊँ वृं ऋग्वेदपारगाय नम:
ऊँ वृं सदानन्दाय नम:
ऊँ वृं सत्यसन्धाय नम:
ऊँ वृं सत्यसंकल्पमानसाय नम:
ऊँ वृं सर्वागमज्ञाय नम:
ऊँ वृं सर्वज्ञाय नम:
ऊँ वृं सर्ववेदान्तविदुषे नम:
ऊँ वृं ब्रह्मपुत्राय नम:
ऊँ वृं ब्राह्मणेशाय नम:
ऊँ वृं ब्रह्मविद्याविशारदाय नम:
ऊँ वृं समानाधिकनिर्मुक्ताय नम:
ऊँ वृं सर्वलोक वंशकराय नम:
ऊँ वृं सुरासुरगन्धर्ववन्दिताय नम:
ऊँ वृं सत्यभाषणाय नम:
ऊँ वृं सुराचार्याय नम:
ऊँ वृं दयावते नम:
ऊँ वृं शुभलक्षणाय नम:
ऊँ वृं लोकत्रयगुरवे नम:
ऊँ वृं श्रीमते नम:
ऊँ वृं सर्वगाय नम:
ऊँ वृं सर्वतोविभवे नम:
ऊँ वृं सर्वेशाय नम:
ऊँ वृं सर्वदा तुष्टाय नम:
ऊँ वृं सर्वपूजिताय नम:
ऊँ वृं सर्वदेवेभ्यो नम:

Visit astrotechlab.com

Featured Post

Read Google books-Astrologer Dr.Suhas

www.astrotechlab.weeebly.com >