Wednesday, February 18, 2015

सावधान ! मन बहुरुपीयॉ है....

सुप्रभातम्....
सावधान! बड़ा बेबस बना सकता है मन     
समर्पण हुआ, तो निश्चित ही साक्षी भाव की अनुभूति होगी और साधक अपने स्वरूप में अवस्थित होगा। पर यदि समर्पण न हो सका तब? इस प्रश्र का उत्तर महर्षि पतंजलि अपने अगले सूत्र यानि कि समाधि पाद के चौथे सूत्र में देते हैं। वह कहते हैं-
वृत्तिसारूप्यमितरत्र॥ १/४॥
साक्षी होने के अलावा अन्य सभी अवस्थाओं में मन की वृत्तियों के साथ तादात्म्य हो जाता है। ये वृत्तियाँ साधक की अन्तर्चेतना को मनचाहा भटकाती हैं। सुख- दुख के सपने दिखाती हैं। कभी हँसाती हैं, कभी रुलाती हैं। इच्छाओं के कच्चे धागों से बाँधती हैं। कल्पनाओं और कामनाओं की मदिरा पिला कर बेहोश करती हैं।
        साक्षी होने के अतिरिक्त अन्य सभी अवस्थाओं का यही सत्य है। जिसे हम सभी किसी न किसी रूप में रोजमर्रा की जिन्दगी में अनुभव करते रहते हैं। मजे की बात तो यह है कि यदा- कदा हम में से कई या यूं कहें कि प्रायः हम सभी इन्हीं कामनाओं की तृप्ति के लिए साधना भी करने लगते हैं। गाढ़ी बेहाशी को और गाढ़ा करने के लिए जप- तप का सिलसिला शुरू करते हैं। इसकी सफलताओं पर खुशियों की अठखेलों से खेलते हैं और असफल होने पर गम के आँसूओं से अपने- आपको भिगोते हैं। वृत्तियों का यह बहुरंगी तमाशा हमारे जीवन का सामान्य परिचय है। इसमें स्वप्न तो अनेक हैं, सत्य एक भी नहीं। इसी तथ्य का संकेत महर्षि के सूत्र में है।
         परम पूज्य गुरुदेव महर्षि पतंजलि के बारे में कहा करते थे कि वे अद्भुत हैं। वे साधक को तपाने में, उससे साधना कराने में विश्वास करते हैं। उनका इधर- उधर की कहानियाँ- किस्से सुनाने में कतई विश्वास नहीं है। बहलाने- फुसलाने में उनका कोई यकीन नहीं है। एक प्रसंग में गुरुदेव के सामने जब इस सूत्र की चर्चा चली, तो उन्होंने कहा- ‘अब यहीं देखो कैसी दो टूक बात कह दी उन्होंने। साधकों के सामने बिलकुल बात साफ कर दी कि या तो साक्षी भाव को उपलब्ध कर अपने स्वरूप में अवस्थित हो जाओ या फिर वृत्तियों के साथ तादात्म्य करके भटकते रहो। इन दो के अलावा कोई तीसरी सच्चाई नहीं हो सकती। जान सको तो जानो, मान सको तो मानो।’
         गुरुदेव कहा करते थे, पतंजलि के सूत्र तो साधकों के लिए भेजे गए टेलीग्राम हैं। इनमें इधर- उधर का एक भी फालतू शब्द नहीं है। कभी- कभी तो एक सूत्र पूरा वाक्य तक नहीं है। वह तो अल्पतम सारभूत है। ये सूत्र ऐसे हैं, जैसे कोई तार करने जाय और वहाँ बेकार के अनावश्यक शब्द काट दे। तार का मतलब ही यही है, कम से कम शब्दों में सम्पूर्ण सन्देश कह दिया जाय। तार की जगह अगर पत्र लिखा जाता, तो शायद दस पन्नें भरने के बावजूद बातें पूरी न हो पाती। लेकिन एक तार में, दस शब्दों में वह केवल पूरा ही नहीं होता, बल्कि पूरे से भी थोड़ा अधिक होता है। वह सीधी हृदय पर चोट करता है। उसमें सारतम होता है।
        इसी प्रसंग में गुरुदेव ने यह भी बताया कि उनकी मार्गदर्शक सत्ता ने भी उनसे बड़ी सीधी- सपाट भाषा में एकदम थोड़े शब्दों में कहा था, साधना करनी है, तो इन्द्रिय सुखों से मुँह मोड़ना होगा। एकदम रूखी- सूखी जिन्दगी जीनी होगी। ये बातें बताकर वह थोड़ा रूके, फिर कहने लगे- यह तो बाद में पता चला कि इस रूखे- सूखे पन में आनन्द की अनन्तता समायी है। बस यही बात महर्षि पतंजलि के बारे में है। वह बहुत ही रूखी- सूखी धरती पर ले चलेंगे, मरुस्थल जैसी भूमि पर। लेकिन मरुस्थल का अपना सौन्दर्य है। उसमें वृक्ष नहीं होते, उसमें नदियाँ नहीं होती, लेकिन उसका एक अपना विस्तार होता है। किसी जंगल की तुलना उससे नहीं की जा सकती। जंगलों का अपना सौन्दर्य है, पहाड़ियों का अपना सौन्दर्य है, नदियों की अपनी सुन्दरताएँ हैं। मरुस्थल की अपनी विराट् अनन्तता है। हाँ, इस राह पर चलने के लिए हिम्मत की जरूरत है। पतंजलि का हर सूत्र साधकों के साहस के लिए चुनौती है। उनके विवेक को सावधान रहने की चेतावनी है।
               पतंजलि बिलकुल साफ तौर पर कहते हैं कि यदि आपको, हमको, मनुष्य मात्र को यदि भटकन, उलझन, तनाव, चिन्ता, दुःख, पीड़ा, अवसाद से सम्पूर्ण रूप से मुक्ति पानी है, तो साक्षी भाव को उपलब्ध होने के अलावा अन्य कोई चारा नहीं है। क्योंकि अन्य अवस्थाओं में तो मन की वृत्तियों के साथ तादात्म्य बना ही रहेगा। मनुष्य की प्रकृति ही ऐसी है। यह बात किसी एक पर, किसी व्यक्ति विशेष पर लागू नहीं होती। बात तो सारे मनुष्यों के लिए कही गयी है। मानव प्रकृति की बनावट व बुनावट की यही पहचान है। साक्षी के अतिरिक्त दूसरी सभी अवस्थाओं में मन के साथ तादात्म्य बना रहता है।

निद्रा साधना शक्ती

नींद, जब आप होते हैं केवल आप             सम्भावनाएँ केवल विभु में ही नहीं, अणु में भी है। पर्वत में ही नहीं, राई में भी बहुत कुछ समाया है। जिन्हें हम तुच्छ समझ लेते हैं, क्षुद्र कहकर उपेक्षित कर देते हैं, उनमें भी न जाने कितना कुछ ऐसा है, जो बेशकीमती है। जागरण के महत्त्व से तो सभी परिचित हैं। महर्षि कहते हैं कि निद्रा भी कम महत्त्वपूर्ण नहीं है। चौथी वृत्ति के रूप में इसके स्वरूप और सत्य को समाधिपाद के दसवें सूत्र में उद्घाटित करते हैं-
अभावप्रत्ययालम्बना वृत्तिर्निद्रा ॥ १/१०॥
    शब्दार्थ- अभाव अभाव की प्रतीति को आश्रय करने वाली; वृत्तिः =वृत्ति; निद्रा=निद्रा है।
अर्थात् मन की यह वृत्ति, जो अपने में किसी विषय वस्तु की अनुपस्थिति पर आधारित होती है- निद्रा है। यही निद्रा ही सार्थक और यथार्थ परिभाषा है। नींद के अलावा हर समय मन अनेकों विषय वस्तुओं से भरा रहता है। भारी भीड़ होती है मन में। विचारों की रेल- पेल, अन्तर्द्वन्द्वों की धक्का- मुक्की क्षण- प्रतिक्षण हलचल मचाए रहती है। कभी कोई आकांक्षा अंकुरित होती है, तो कभी कोई स्मृति मन के पटल पर अपना रेखा चित्र खींचती है, यदा- कदा कोई भावी कल्पना अपनी बहुरंगी छटा बिखेरती है। हमेशा ही कुछ न कुछ चलता रहता है। यह सब क्षमता तभी होती है, जब सोये होते हैं गाढ़ी नींद में। मन का स्वरूप और व्यापार मिट जाता है, केवल होते हैंआप—बिना किसी उपाधि और व्याधि के।
      परम पूज्य गुरुदेव कहते थे- नींद के क्षण बड़े असाधारण और आश्चर्य जनक होते हैं। कोई इन्हें समझ ले और सम्हाल ले, तो बहुत कुछ पाया जा सकता है। ऐसा होने पर साधकों के लिए यह योगनिद्रा बन जाती है, जबकि सिद्धजन इसे समाधि में रूपान्तरित कर लेते हैं। दिन के जागरण में जितनी गहरी साधनाएँ होती हैं, उससे कहीं अधिक गहरी और प्रभावोत्पादक साधनाएँ रात्रि की नींद में हो सकती है। वैदिक संहिताओं में अनेकों प्रकरण ऐसे हैं, जिनसे गुरुदेव के वचनों का महत्त्व प्रकट होता है।
      ऋग्वेद के रात्रि सूक्त में कुशिक- सौभर व भारद्वाज ऋषि ने रात्रि की महिमा का बड़ा ही तत्त्वचिंतन पूर्ण गायन किया है। इस सूक्त के आठ मंत्र निद्रा को अपनी साधना बनाने वाले साधकों के लिए नित्य मननीय है। इनमें से छठवें मंत्र में ऋषि कहते हैं- ‘यावयावृक्यं वृकं यवय स्तेनभूर्म्ये। अथा नः सुतरा भव’॥ ६॥ ‘हे रात्रिमयी चित् शक्ति! तुम कृपा करके वासनामयी वृकी तथा पापमय वृक को अलग करो। काम आदि तस्कर समुदाय को भी दूर हटाओ। तदन्तर हमारे लिए सुख पूर्वक तरने योग्य बन जाओ। मोक्षदायिनी एवं कल्याणकारिणी बन जाओ।’
       ये स्वर हैं उन महासाधकों के, जो निद्रा को अपनी साधना बनाने के लिए साहस पूर्ण कदम बढ़ाते हैं। वे जड़ता पूर्ण तमस् और वासनाओं के रजस् को शुद्ध सत्त्व में रूपान्तरित करते हैं। और निद्रा को आलस्य और विलास की शक्ति के रूप में नहीं, जगन्माता भगवती आदि शक्ति के रूप में अपना प्रणाम निवेदित करते हुए कहते हैं-
या देवी सर्वभूतेषु निद्रा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
देवी सप्तसती ५/२३- २५
शुभ रात्री...🙏

Monday, February 16, 2015

महाशिवरात्री पुजन विधान -डॉ सुहास रोकडे

महाशिवरात्री पुजन विधी

खालील सर्व १० विधींसाठी नित्य पूजन पुस्तिका अथवा /www.astrotechlab.com or http:/astrotechlab.blogspot.in वर संपर्क साधावा.
१) पवित्रीकरण २) आचमन ३) पृथ्वीपूजन ४) दिगबंधन ५) संकल्प ६) गणेश पूजन स्थापना ७) शिवालिंग स्थापना एवंम् शिवाभिषेक ८) बिल्वार्पन ९) आरती १०) क्षमाप्रार्थना शिवपूजन, जपास
महानिशिथकाल दि.१३-२-२०१८ला रात्री 12.28 ते रात्री 1.18 असुन यासमयी श्री सांब सदाशिवाय नम: या मंत्राने शिवपूजनास अधिक महत्व आहे. या दिवशी पुर्ण दिवस उपवास व विवाहीतांनी एकभुक्ती पाळावी.
प्रहरानुरुप मंत्र जप
श्री शिवाय नम:6.17-9.26pm
श्री शंकराय नम: 9.30-12.33pm श्री महेश्वराय नम: 12.33-3.35 am श्री रुद्राय नम: 3.35 am यासोबत शिवलिलामृत अथवा याचा ११ अध्याय तरी अवश्य वाचावा. फलश्रृती या व्रताने मनोकामनापुर्ती व सदृढ आरोग्य लाभुन वर्षभर शिवरक्षाकवच प्राप्त होते. महामृत्युंजय मंत्र जपावा.

- ज्योतिष्याचार्य डॉ सुहास रोकडे
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Saturday, February 14, 2015

महाशिवरात्री के अद्भुत उपाय- डॉ सुहास रोकडे

महाशिवरात्रि पर कर सकते हैं कालसर्प दोष निवारण के ये उपाय

महाशिवरात्रि (17 फरवरी, मंगलवार) पर कालसर्प दोष निवारण के उपाय करने का विशेष फल मिलता है। ज्योतिष के अनुसार कालसर्प दोष मुख्य रूप से 12 प्रकार का होता है। किसकी कुंडली में कौन सा कालसर्प दोष है, इसकी जानकारी ज्योतिषी ही दे सकता है। प्रत्येक कालसर्प दोष के निवारण के लिए अलग-अलग उपाय हैं। आगे कालसर्प दोष के विभिन्न प्रकार व उनके निवारण के उपाय बताए गए हैं, जो इस प्रकार हैं-

1- अनन्त कालसर्प दोष

- अनन्त कालसर्प दोष होने पर महाशिवरात्रि के दिन एकमुखी, आठमुखी या नौ मुखी रुद्राक्ष धारण करें।

- यदि इस दोष के कारण स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता है तो महाशिवरात्रि के दिन रांगे (एक धातु) से बना सिक्का पानी में प्रवाहित करें।

2- कुलिक कालसर्प दोष

- कुलिक नामक कालसर्प दोष होने पर दो रंग वाला कंबल अथवा गर्म वस्त्र दान करें।

- चांदी की ठोस गोली बनवाकर उसकी पूजा करें और उसे अपने पास रखें।

3- वासुकि कालसर्प दोष

- वासुकि कालसर्प दोष होने पर रात को सोते समय सिरहाने पर थोड़ा बाजरा रखें और सुबह उठकर उसे पक्षियों को खिला दें।

- महाशिवरात्रि पर लाल धागे में तीन, आठ या नौ मुखी रुद्राक्ष धारण करें।

4- शंखपाल कालसर्प दोष

- शंखपाल कालसर्प दोष के निवारण के लिए महाशिवरात्रि के दिन बादाम बहते पानी में प्रवाहित करें।

- शिवलिंग का दूध से अभिषेक करें।

5- पद्म कालसर्प दोष

- पद्म कालसर्प दोष होने पर महाशिवरात्रि के दिन से प्रारंभ करते हुए 40 दिनों तक रोज सरस्वती चालीसा का पाठ करें।

- महाशिवरात्रि के दिन जरूरतमंदों को पीले वस्त्र का दान करें और तुलसी का पौधा लगाएं।

6- महापद्म कालसर्प दोष

- महापद्म कालसर्प दोष के निदान के लिए हनुमान मंदिर में जाकर सुंदरकांड का पाठ करें।

- महाशिवरात्रि के दिन गरीब, असहायों को भोजन करवाकर दान-दक्षिणा दें।

7- तक्षक कालसर्प दोष

- तक्षक कालसर्प योग के निवारण के लिए 11 नारियल बहते हुए जल में बहाएं।

- सफेद कपड़े और चावल का दान करें।

8- कर्कोटक कालसर्प दोष

- कर्कोटक कालसर्प योग होने पर बटुकभैरव के मंदिर में जाकर उन्हें दही-गुड़ का भोग लगाएं और पूजा करें।

- शीशे के आठ टुकड़े पानी में प्रवाहित करें।

9- शंखचूड़ कालसर्प दोष

- शंखचूड़ नामक कालसर्प दोष की शांति के लिए महाशिवरात्रि के दिन रात को सोने से पहले सिरहाने के पास जौ रखें और उसे अगले दिन पक्षियों को खिला दें।

- पांचमुखी, आठमुखी या नौ मुखी रुद्राक्ष धारण करें।

10- घातक कालसर्प दोष

- घातक कालसर्प के निवारण के लिए पीतल के बर्तन में गंगाजल भरकर अपने पूजा स्थल पर रखें।

- चार मुखी, आठमुखी और नौ मुखी रुद्राक्ष हरे रंग के धागे में धारण करें।

11- विषधर कालसर्प

- विषधर कालसर्प के निदान के लिए परिवार के सदस्यों की संख्या के बराबर नारियल लेकर एक-एक नारियल पर उनका हाथ लगवाकर बहते हुए जल में प्रवाहित करें।

- भगवान शिव के मंदिर में जाकर दान-दक्षिणा दें।

12- शेषनाग कालसर्प दोष

- शेषनाग कालसर्प दोष होने पर महाशिवरात्रि के एक दिन पूर्व रात्रि को लाल कपड़े में सौंफ बांधकर सिरहाने रखें और उसे अगले दिन सुबह खा लें।

- दूध-जलेबी का दान करें।

ज्योतिष्याचार्य
डॉ सुहास रोकडे

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Friday, February 13, 2015

मंगल परिवर्तन लाभ-हानी

23 मार्च तक मीन राशि में रहेगा मंगल, कुछ ऐसा होगा असर
आज से मंगल मीन राशि में रहेगा। 4 जनवरी से मंगल कुंभ राशि में आ गया था। अब 23 मार्च तक मीन राशि में रहेगा। मीन राशि में केतु है। इस राशि पर राहु की पूरी नजर भी है। मंगल के साथ केतु और मंगल पर राहु की नजर होने से अंगारक योग बन रहा है। अंगारक योग कुंडली में मंगल की शुभ या अशुभ स्थिति के अनुसार अच्छा-बुरा फल देता है। शत्रु, भूमि, साहस, चोट, रक्त, कर्जा, इन सबका कारक मंगल है। जिन लोगों के लिए मंगल की स्थिति शुभ रहेगी उन लोगों को 23 मार्च तक धन लाभ, प्रमोशन या कोई बड़ा फायदा मिल सकता है। जिन लोगों के लिए मंगल की स्थिति ठीक नहीं है उन लोगों को धन हानि, कर्जा, दुर्घटना या ब्लड संबंधी बीमारियों से परेशान होना पड़ सकता है।

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