Wednesday, December 9, 2020

ज्ञान मिमांसा - स्वामी विवेकानंद

🔥ओ३म् 🔥
🙏नमस्ते जी 🙏
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तत्त्वज्ञान से बहुत से हीरे प्राप्त होते हैं, उनमें से एक है - मन की शांति।
       संसार में चार प्रकार का ज्ञान होता है। मिथ्याज्ञान, संशयज्ञान, शाब्दिक ज्ञान, और तत्त्वज्ञान।
          मिथ्याज्ञान का अर्थ है झूठा ज्ञान। अर्थात वस्तु कुछ और है, और व्यक्ति उसको जानता समझता कुछ और है। गलत समझता है। इस गलत समझने का नाम मिथ्याज्ञान है। जैसे रस्सी को साँप समझ लेना। हानिकारक कर्म सिगरेट पीना आदि को लाभदायक कर्म मान लेना। सुखदायक उत्तम कर्म यज्ञ सेवा दान आदि को दुखदायक व्यर्थ कर्म मान लेना। यह सब मिथ्याज्ञान है।
           दूसरा है संशयज्ञान। इसका अर्थ है कि जब व्यक्ति के मन में दो तीन चार या अधिक विचार हों, परंतु वह कुछ निर्णय नहीं कर पा रहा हो, कि इन 2/3/4 विचारों में से सही विचार कौन सा है?  इस स्थिति को संशय कहते हैं।
 जैसे लोगों को संशय रहता है, पता नहीं ईश्वर है या नहीं? अगला जन्म होगा या नहीं? कर्मों का फल ठीक-ठीक न्याय से मिलेगा या नहीं? सभी कर्मों का फल इसी जन्म में मिलेगा या नहीं इत्यादि। इन विषयों में जब कोई निर्णय नहीं हो पाता, तो उसे संशयज्ञान कहते हैं।  
      तीसरा है शाब्दिक ज्ञान। अर्थात शास्त्रों की बातें पढ़ सुनकर शब्दों से तो व्यक्ति किसी वस्तु को अथवा किसी व्यवहार को ठीक-ठीक जान लेता है। परंतु आचरण वैसा नहीं कर पाता। इस प्रकार के ज्ञान को शाब्दिक ज्ञान कहते हैं।  जैसे झूठ नहीं बोलना चाहिए, छल कपट नहीं करना चाहिए, यह ज्ञान लगभग सभी को है। फिर भी अधिकांश लोग झूठ बोलते हैं, छल कपट करते हैं। उस जानी हुई बात का आचरण नहीं कर पाते। इस प्रकार का जो ज्ञान है, वह शाब्दिक ज्ञान है।
         अब चौथा तत्त्वज्ञान है। वास्तविक ज्ञान, यथार्थ ज्ञान, भी इसके नाम हैं। इसका अर्थ है कि आपने शास्त्रों से जो ठीक-ठीक जाना, शाब्दिक ज्ञान प्राप्त किया, उसका आचरण भी आप वैसा ही करते हैं, जैसा शास्त्रों के अनुकूल करना चाहिए। और जो काम नहीं करना चाहिए, उसे नहीं करते हैं। इस प्रकार का जो मनुष्य के अंदर ज्ञान होता है, उसे तत्त्वज्ञान कहते हैं।
        चारों प्रकार के ज्ञानों में सबसे उत्तम यही तत्त्वज्ञान है। यही वास्तविक ज्ञान है। इसी से मनुष्य का कल्याण होता है, इसके बिना नहीं।
         जब व्यक्ति को यह ज्ञान प्राप्त हो जाता है, अर्थात उसका आचरण भी शाब्दिक ज्ञान के अनुरूप हो जाता है, तो उसे ईश्वर की कृपा से बहुत से हीरे प्राप्त होते हैं, अर्थात विशेष लाभदायक गुण प्राप्त होते हैं। जैसे कि ईश्वर में रुचि होना, संसार से राग द्वेष कम होते जाना और वैराग्य प्राप्त होना, भोगों में आसक्ति कम होते जाना, पक्षपात रहित न्याय पूर्वक आचरण करना, किसी पर अन्याय नहीं करना, झूठ छल कपट चोरी बेईमानी धोखाधड़ी आदि बुराइयों से दूर रहना। सेवा परोपकार दान दया नम्रता सभ्यता आदि उत्तम गुणों को धारण कर के आनन्दित रहना, मन की शांति प्राप्त होना, निर्भयता प्राप्त होना आदि।
        इन सब हीरों में से एक हीरा है, मन की शांति प्राप्त होना। यह भी इसी तत्त्वज्ञान से ही मिलता है।
        इसलिए जीवन में तत्वज्ञान को प्राप्त करें। मन की शांति को प्राप्त करें। अन्य भी ऊपर लिखे उत्तम गुणों की प्राप्ति करें। आनंद से जिएँ। ईश्वर के आदेश का पालन करें, और सब दुखों से छूट कर, मोक्ष में पूर्ण आनंद को भोगें।।

 - स्वामी विवेकानन्द परिव्राजक

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