🙏🏻 हरी ॐ 🙏🏻
द्रोणाचार्य ने एकलव्य को धनुर्विद्या क्यों नहीं दी थी ?
गुरु द्रोणाचार्य ने एकलव्य को शिक्षा क्यों नहीं दी और भगवान परशुराम ने कर्ण को श्राप क्यों दिया .. ये दो प्रश्न कॉमन हो गये है हर बुद्धिजीवियों के .. लेकिन अब इन्टरनेट पर भ्रमित बुद्धिजीवियों का एक जो नया वर्ग उभरकर सामने आ रहा है उसका एकमात्र उद्देश्य यही है इतिहास और वर्तमान की हर समस्या का जिम्मेदार किसी विशिष्ट समुह को ठहराना
दरअसल लोगो ने धर्म को पूजा पाठ तक सीमित कर दिया औत इतिहास की किताबो के आधे पन्ने मुग़लकाल का “वैभव” गिनाने में निकल गये और आधे “आज़ादी” की लड़ाई में .. समझने की कोशिश कोई करना नहीं चाहता .. झूठ भी पचास बार कहने से सत्य ही “लगने लगता” .. ये “intellectual virus” है
“जब गुरु द्रोणाचार्य ने एकलव्य को अपनी धनुर्विद्या का दुरूपयोग करते ऐक कुत्ते का मुहँ बन्द करते हुए देखा तो उन्होंनें एकलव्य का अंगूठा गुरु-दक्षिणा में माँग कर उस की धनुर्विद्या को निष्क्रिय करवा कर क्रूरता का अपयश अपने सर ले लिया था ..
भगवान परशुराम ने सिर्फ ब्राह्मणों को ही शिक्षा देने का प्रण लिया था .. लेकिन जब ब्रम्हास्त्र की शिक्षा लेने कर्ण उनके पास गया तो उसने खुद को ब्राह्मण बताया .. परशुराम जी ने उसे ब्रह्मास्त्र की शिक्षा भी दी लेकिन परशुराम जी को जब पता चला उसके कर्म क्षत्रियो वाले है तो उसे श्राप दिया की वह उस समय इस विद्या को भूल जाएगा जब उसे इसकी सर्वाधिक आवश्कता होगी … साथ में उसके सेवक धर्म से प्रभावित होकर उसे आशीर्वाद भी दिया की उसे वो मिलेगा जिसकी उसे चाह है .. इतिहास गवाह है महाभारत में सबसे अधिक ख्याति उसी को मिली …
महाभारत में अगर कर्ण ब्रम्हास्त्र का प्रयोग कर देता तो प्रथ्वी का विनाश निश्चित था .. अपने कर्मो के कारण एकलव्य भी कौरवो की तरफ से लड़ता तब महाभारत का अंत सत्य की असत्य पर जीत नहीं असत्य की सत्य पर जीत होता
विद्या दुधारी तलवार है यदी गलत विचारोसे प्रेरीत व्यक्ती की हाथ लगी तो विनाश निश्चित है....सुपात्र को कसौटी पर परखना प्राथमिक परीक्षा का उद्देश है...संस्कार, धर्म, संस्कृती का रक्षण तभी संभव है..
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