Tuesday, October 23, 2018

कोजागीरी पौर्णिमा के अमृतमय दुध का रहस्य जानिये

कोजागिरी पौर्णिमा के अमृतमय दुध का रहस्य

शरद पूर्णिमा / चंद्रमा से कैसे मिलता है अमृत जानिए इसका वैज्ञानिक कारण


शरद पूर्णिमाा इसे कोजगीरी पूर्णिमा भी कहते हैं। इसे जागृति पूर्णिमा या कुमार पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। पुराणों के अनुसार कुछ रातों का बहुत महत्व है जैसे नवरात्रि, शिवरात्रि और इनके अलावा शरद पूर्णिमा भी शामिल है। श्रीमद्भागवत महापुराण के अनुसार चन्द्रमा को औषधि का देवता माना जाता है। इस दिन चांद अपनी 16 कलाओं से पूरा होकर अमृत की वर्षा करता है। मान्यताओं से अलग वैज्ञानिकों ने भी इस पूर्णिमा को खास बताया है, जिसके पीछे कई सैद्धांतिक और वैज्ञानिक तथ्य छिपे हुए हैं। इस पूर्णिमा पर चावल और दूध से बनी खीर को चांदनी रात में रखकर प्रात: 4 बजे सेवन किया जाता है। इससे रोग खत्म हो जाते हैं और रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।

औषधियों की स्पंदन क्षमता होती है अधिक
एक अध्ययन के अनुसार शरद पूर्णिमा पर औषधियों की स्पंदन क्षमता अधिक होती है। रसाकर्षण के कारण जब अंदर का पदार्थ सांद्र होने लगता है, तब रिक्तिकाओं से विशेष प्रकार की ध्वनि उत्पन्न होती है। लंकाधिपति रावण शरद पूर्णिमा की रात किरणों को दर्पण के माध्यम से अपनी नाभि पर ग्रहण करता था। इस प्रक्रिया से उसे पुनर्योवन शक्ति प्राप्त होती थी। चांदनी रात में 10 से मध्यरात्रि 12 बजे के बीच कम वस्त्रों में घूमने वाले व्यक्ति को ऊर्जा प्राप्त होती है।  सोमचक्र, नक्षत्रीय चक्र और आश्विन के त्रिकोण के कारण शरद ऋतु से ऊर्जा का संग्रह होता है और बसंत में निग्रह होता है।

क्यों बनाई जाती है खीर ?
वैज्ञानिकों के अनुसार दूध में लैक्टिक अम्ल और अमृत तत्व होता है। यह तत्व किरणों से अधिक मात्रा में शक्ति का शोषण करता है। चावल में स्टार्च होने के कारण यह प्रक्रिया और भी आसान हो जाती है। इसी कारण ऋषि-मुनियों ने शरद पूर्णिमा की रात्रि में खीर खुले आसमान में रखने का विधान किया है और इस खीर का सेवन सेहत के लिए महत्वपूर्ण बताया है। इससे पुनर्योवन शक्ति और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। यह परंपरा विज्ञान पर आधारित है।

चांदी का विशेष महत्व
एक अन्य वैज्ञानिक शोध के अनुसार इस दिन दूध से बने उत्पाद का चांदी के पात्र में सेवन करना चाहिए। चांदी में प्रतिरोधक क्षमता अधिक होती है। इससे विषाणु दूर रहते हैं। प्रत्येक व्यक्ति को कम से कम 30 मिनट तक शरद पूर्णिमा का स्नान करना चाहिए। इस दिन बनने वाला वातावरण दमा के रोगियों के लिए विशेषकर लाभकारी माना गया है।

-डॉ.सुहास रोकडे
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